
मुख्य बिंदु:
- शिमला, सोलन, कांगड़ा, मंडी, ऊना में पेयजल की कमी गंभीर।
- शिमला में गर्मियों में जल आपूर्ति 30% तक घट जाती है।
- कांगड़ा में 40% ग्रामीण घरों को नियमित जल नहीं मिलता।
- सरकार 620,000 लोगों के लिए जल परियोजनाएं लागू कर रही है।
- जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण ने संकट को बढ़ाया।
हिमाचल के बड़े शहरों में पेयजल की कमी और प्रभावित क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहर और कस्बे पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। शिमला, सोलन, कांगड़ा, मंडी और ऊना जिलों में यह समस्या गंभीर है। शहरीकरण, पर्यटन और भूजल की कमी ने स्थिति को जटिल बनाया। गर्मियों में जल स्रोतों का सूखना आम है।
शिमला में जल संकट: आंकड़े और चुनौतियां
शिमला में 2018 के जल संकट ने वैश्विक ध्यान खींचा, जब शहर को आठ दिनों तक पानी नहीं मिला। वर्तमान में, गर्मियों में जल आपूर्ति 30-40% तक घटकर 20-25 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) रह जाती है, जबकि मांग 45 MLD है। शिमला जल प्रबंधन निगम (SJPNL) ने अब दैनिक 3-4 घंटे की आपूर्ति सुनिश्चित की है। पुरानी पाइपलाइनों में 47% रिसाव जल हानि का प्रमुख कारण है। टैंकर आपूर्ति और गिरी-गुम्मा परियोजनाएं संकट कम कर रही हैं।
सोलन और कसौली में पेयजल की स्थिति
सोलन और कसौली में जल संकट गहरा है। सोलन की जल मांग 15 MLD है, लेकिन गर्मियों में केवल 8-10 MLD उपलब्ध होता है। कसौली में पर्यटन के कारण मांग 20% बढ़ जाती है। भूजल स्तर में 2-3 मीटर की वार्षिक कमी दर्ज की गई है। जल शक्ति परियोजना के तहत सोलन को 5 लाख रुपये मिले हैं। रिसाव नियंत्रण और जलाशय सफाई पर काम चल रहा है।
कांगड़ा: धर्मशाला और पालमपुर में जल की कमी
कांगड़ा में 40% ग्रामीण घरों को नियमित पेयजल नहीं मिलता। धर्मशाला में जल आपूर्ति 12 MLD है, जबकि मांग 18 MLD तक पहुंचती है। पालमपुर में भूजल स्तर 5 मीटर तक गिर गया है। कुएं और हैंडपंप सूख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन ने वर्षा को 15% कम किया। सरकार नई योजनाओं से जल पहुंचा रही है।
मंडी और सुंदरनगर में पेयजल की चुनौतियां
मंडी में जल मांग 10 MLD है, लेकिन गर्मियों में 6 MLD उपलब्ध होता है। सुंदरनगर और सरकाघाट में 30% घरों को अनियमित आपूर्ति मिलती है। भूजल दोहन ने स्रोतों को कमजोर किया। जल शक्ति विभाग ने ट्यूबवेल स्थापना फिर शुरू की। वर्षा जल संचयन संरचनाएं बन रही हैं।
ऊना: हरोली और गगरेट में जल संकट
ऊना के हरोली और गगरेट में जल की कमी स्पष्ट है। जिले में 25% ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति बाधित रहती है। गर्मियों में भूजल स्तर 4 मीटर तक गिरता है। जल शक्ति परियोजना ने ऊना को जल संरक्षण के लिए धन दिया। टैंकर और अस्थायी पाइपलाइनें समाधान का हिस्सा हैं।
पेयजल संकट के कारण और दीर्घकालिक प्रभाव
जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल में हिमपात और वर्षा को 20% कम किया। अनियोजित शहरीकरण और भूजल दोहन ने संकट बढ़ाया। 2015 में शिमला में दूषित जल से 30 लोगों की मृत्यु हुई। जल हानि और बीमारियां आर्थिक नुकसान का कारण हैं। जल संरक्षण की कमी चिंताजनक है।
सरकारी प्रयास और स्मार्ट जल प्रबंधन
एशियाई विकास बैंक की परियोजना 10 जिलों में 620,000 लोगों को जल पहुंचाएगी। शिमला, सोलन, कांगड़ा, मंडी, ऊना में योजनाएं लागू हैं। ओजोनेशन, यूवी फिल्टरेशन और सेंसर-आधारित प्रणालियां शुरू हुईं। 71 जल परीक्षण प्रयोगशालाएं शुद्धता सुनिश्चित करती हैं। सौर ऊर्जा से जल योजनाएं चल रही हैं।
वर्षा जल संचयन और सामुदायिक भागीदारी
वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना जरूरी है। सरकार ने 500 संचयन संरचनाएं बनाईं। शिमला में जल सखी स्वयंसेवक जागरूकता फैला रही हैं। ग्रामीण पंचायतें जल प्रबंधन में सक्रिय हैं। सामुदायिक प्रयास संकट कम कर सकते हैं।
सतत जल प्रबंधन की ओर कदम
हिमाचल को जल संकट से मुक्त करने के लिए सतत प्रबंधन जरूरी है। स्रोतों का पुनर्भरण और संरक्षण आवश्यक है। सरकार और समुदाय मिलकर काम कर रहे हैं। नीतिगत सुधार और निवेश से जल उपलब्धता बढ़ेगी। स्वच्छ जल हर नागरिक का अधिकार है।
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